Tuesday, May 28, 2013

अनमोल

मै था बहुत ही तन्हा सब ने था गम दीया ।
जिस जिस को चाहा मेने रुसवा मुजको किया ॥
तन्हायीमे घिरकर ही जि रहा था में ।
एक ख्वाब सजाने को क्या कुछ नहीं किया मैने ॥
एक रोज मिली फिर जागे नये अरमां ।
उसकी निगाह-ए-नरगिस ने कत्ल फिर कीया ॥
बातें हुइ शुरु तब फीर इश्क कुछ हुआ ।
उसकी इन्ही बातों ने मुझे अपना बना लीया ॥
इजहार-ए-महोंब्बत फीर उसने भी कीया था ।
मैने हाल-ए-दिल उसे कुछ ऐसे सुना दीया ॥

जब तक बिका न था तो कोइ पु्छ्ता न था ।
आपने खरीद कर हमको अनमोल कर दिया ॥